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सलीम जब उस बच्चे को लेकर जाने लगा बकरी समझ गई। उसके बच्चे को यह लोग ले जा रहे हैं।
विषधर अब शांत स्वभाव का हो गया। वह किसी को काटना नहीं था।
बिच्छू ने अपने स्वभाव के कारण संत को डंक मारकर नाले में गिर गया।
अगले दिन शायरा को पता चलता है की यह हार रानी का है और वह इसके खोने से बहुत परेशां है। शायरा मायूस हो गयी। पर आखरी में शायरा ने उस हार को रानी को वापस लौटाने का निर्णय लिया और राजमहल की तरफ चल पड़ी। रानी अपना हार वापस पा कर बहुत खुश हुई और उसने बदले में शायरा की कोई एक इच्छा पूरी करने का वादा किया। शायरा ने रानी से कहा की दिवाली वाली रात को पूरे गाँव में तक तक अँधेरा रखा जाए जब तक वह एक आतिशबाजी कर के इशारा न दे। उसके बाद सब रौशनी कर सकते हैं।
अगर कबरी बिल्ली घर-भर में किसी से प्रेम करती थी तो रामू की बहू से, और अगर रामू की बहू घर-भर में किसी से घृणा करती थी तो कबरी बिल्ली से। रामू की बहू, दो महीने हुए मायके से प्रथम बार ससुराल आई थी, पति की प्यारी और सास की दुलारी, चौदह वर्ष की बालिका। भंडार-घर भगवतीचरण वर्मा
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दादा जी ने देखा दोनों बिल्ली के बच्चे भूखे थे। दादा जी ने उन दोनों बिल्ली के click here बच्चों को खाना खिलाया और एक एक कटोरी दूध पिलाई। अब बिल्ली की भूख शांत हो गई। वह दोनों आपस में खेलने लगे। इसे देखकर ढोलू-मोलू बोले बिल्ली बच गई दादाजी ने ढोलू-मोलू को शाबाशी दी।
अपने घर पहुँचने पर, उसने तुरंत अपनी पत्नी को मछलियाँ दीं और उसे स्वादिष्ट भोजन बनाने को कहा। पर जब पत्नी ने मछली का पहला टुकड़ा खाया तो वह तुरंत बेहोश हो गई। जैसे ही वह बेहोश हुई, पीछे से एक आवाज आई। आवाज ने किसान से कहा कि उसे उसके लालच की सजा मिली है। किसान ने अपनी गलती के लिए माफी मांगी और अपनी पत्नी को बचाने का अनुरोध किया। आवाज ने किसान को आदेश दिया कि मछली बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले सभी बर्तन उसी सरोवर सरोवर में फेंक दे। उसने वैसे ही किया और इस तरह उसकी पत्नी फिर से उठ खड़ी हुई।
वह गाय इतनी प्यारी थी, मोती को देखकर बहुत खुश हो जाती ।
आर्थिक विषमता को किसी अमानुषिक वास्तविकता की त्रासदी में बदलते देखना आज की वंचना और अमीरी की खाइयों में बाँटने वाली राजनीति और समाज व्यवस्था पर यह कहानी एक कालजयी तमाचे की तरह है.
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश
लड़के पर जवानी आती देख जब्बार के बाप ने पड़ोस के गाँव में एक लड़की तजवीज़ कर ली। लेकिन जब्बार ने हस्बा की लड़की शब्बू को जो पानी भर कर लौटते देखा, तो उसकी सुध-बुध जाती रही। जैसे कथा कहानी में कहा जाता है कि शाहज़ादा नदी में बहता हुआ सोने का एक बाल यशपाल
शांति ने ऊब कर काग़ज़ के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और उठकर अनमनी-सी कमरे में घूमने लगी। उसका मन स्वस्थ नहीं था, लिखते-लिखते उसका ध्यान बँट जाता था। केवल चार पंक्तियाँ वह लिखना चाहती थी; पर वह जो कुछ लिखना चाहती थी, उससे लिखा न जाता था। भावावेश में कुछ-का-कुछ उपेन्द्रनाथ अश्क
अँधियारे गलियारे में चलते हुए लतिका ठिठक गई। दीवार का सहारा लेकर उसने लैंप की बत्ती बढ़ा दी। सीढ़ियों पर उसकी छाया एक बेडौल फटी-फटी आकृति खींचने लगी। सात नंबर कमरे से लड़कियों की बातचीत और हँसी-ठहाकों का स्वर अभी तक आ रहा था। लतिका ने दरवाज़ा खटखटाया। निर्मल वर्मा